मौर्य काल ( Maurya Empire )
चंद्रगुप्त मौर्य के समय से ही मौर्यों की सत्ता इस क्षेत्र में फैल गई। कोटा जिले के कणसावा गांव से मिले शिलालेख से यह पता चलता है कि वहां मौर्य वंश के राजा धवल का राज्य था बैराठ से अशोक के दो अभिलेख मिले हैं मौर्य काल में राजस्थान सिंध, गुजरात तथा कोकण का क्षेत्र अपर जनपद अथवा पश्चिमी जनपद कहलाता था
अशोक का बैराठ का शिलालेख तथा उसके उतराधिकारी कुणाल के पुत्र सम्प्रति द्वारा बनवाये गये मन्दिर मौर्यों के प्रभाव की पुष्टि करते हैं कुमारपाल प्रबंध अन्य जैन ग्रंथ से अनुमानित है कि चित्तौड़ का किला व चित्रांग तालाब मौर्य राजा चित्रांग द्वारा बनवाया हुआ है चित्तौड़ से कुछ दूर मानसरोवर नामक तालाब पर राजा मान का जो मौर्यवंशी माना जाता हैं
विक्रम संवत 770 का शिलालेख कर्नल टॉड को मिला जिसमें माहेश्वर, भीमभोज और मानचार नाम क्रमशः दिये है इन प्रमाणों से मौर्यों का राजस्थान में अधिकार और प्रभाव स्पष्ट होता है।
राजस्थान में मौर्य वंश ( Maurya dynasty in Rajasthan )
मौर्य युग में मत्स्य जनपद का भाग मौर्य शासकों के अधीन आ गया था। इस संदर्भ में अशोक का भाब्रू शिलालेख अति-महत्त्वपूर्ण है, जो राजस्थान में मौर्य शासन तथा अशोक के बौद्ध होने की पुष्टि करता है।
इसके अतिरिक्त अशोक के उत्तराधिकारी कुणाल के पुत्र सम्प्रति द्वारा बनवाये गये मंदिर इस वंश के प्रभाव की पुष्टि करते है। कुमारपाल प्रबंध तथा अन्य जैन ग्रन्थों से अनुमानित है कि चित्तौड़ का किला व एक चित्रांग तालाब मौर्य राजा चित्रांग का बनवाया गया है।
चित्तौड़ से कुछ दूर मानसरोवर नामक तालाब पर मौर्यवंशी राजा मान का शिलालेख मिला है। जी.एच. ओझा ने उदयपुर राज्य के इतिहास में लिखा है कि चित्तौड़ का किला मौर्य वंश के राजा चित्रांगद ने बनाया था, जिसे आठवीं शताब्दी में बापा रावल ने मौर्य वंश के अंतिम राजा मान से यह किला छिना था।
इसके अतिरिक्त कोटा के कणसवा गाँव से मौर्य राजा धवल का शिलालेख मिला है जो बताता है कि राजस्थान में मौर्य राजाओं एवं उनके सामंतों का प्रभाव रहा होगा।
राजस्थान में जनपद ( District in Rajasthan )
राजस्थान के प्राचीन इतिहास का प्रारंभ प्रागैतिहासिक काल से ही शुरू हो जाता है। प्रागैतिहासिक काल के कई महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल प्राप्त होते जैसे- बागोर से प्राचीनतम पशुपालन के साक्ष्य मिले तथा दर, भरतपुर से प्राचीन चित्रित शैलाश्रय मिली है किंतु यहाँ से कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिलते हैं जिसके कारण इनका विस्तृत अध्ययन संभव नहीं हो पाया है।
प्राचीनतम साहित्य 6वीं सदी ईस्वी पूर्व से प्राप्त होते हैं जो राजस्थान में जनपद युग का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह जनपद चित्तौड़, अलवर, भरतपुर, जयपुर क्षेत्र में विस्तृत थे तथा यह क्रमशः शिवी, राजन्य, शाल्व एवं मत्स्य जनपद के नाम से जाने जाते थे।
कालांतर में महाजनपद का काल आया जिसमें राजस्थान के दो महत्त्वपपूर्ण महाजनपद का वर्णन मिलता है, जो निम्न थे- शुरसेन एवं कुरु जो क्रमशः भरतपुर, धौलपुर एवं अलवर क्षेत्र में विस्तृत थे।
महाभारत युद्ध के बाद कुरु और यादव जन-पद निर्बल हो गये। महात्मा बुद्ध के समय से अवन्ति राज्य का विस्तार हो रहा था। समूचा पूर्वी राजस्थान तथा मालवा प्रदेश इसके अंतर्गत था। ऐसा लगता है कि शूरसेन और मत्स्य भी किसी न किसी रूप में अवंति के प्रभाव क्षेत्र में थे।
327 ई. पू. सिकन्दर के आक्रमण के कारण पंजाब के कई जनों ने उसकी सेना का सामना किया। अपनी सुरक्षा और व्यक्तित्व को बनाए रखने के लिए ये कई कबीले राजस्थान की ओर बढ़े जिनमें मालव, शिवी, अर्जुनायन, योधेय आदि मुख्य थे। इन्होंने क्रमशः टोंक, चित्तौड़, अलवर-भरतपुर तथा बीकानेर पर अपना अधिकार स्थापित कर दिया।
मालव जनपद में श्री सोम नामक राजा हुआ जिसने 225 ई. में अपने शत्रुओं को परास्त करने के उपलक्ष में एकषष्ठी यज्ञ का आयोजन किया। ऐसा प्रतीत होता है कि समुद्रगुप्त के काल तक वे स्वतंत्र बने रहे।
मत्स्य जनपद ( Matsya Janapad )- मत्स्य शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है जहां मत्स्य निवासियों को सुदास का शत्रु बताया गया है। मत्स्य जनपद आधुनिक जयपुर, अलवर, भरतपुर के मध्यवर्ती क्षेत्र में विस्तृत था। इसकी राजधानी विराटनगर थी।
महाभारत काल में मत्स्य जनपद पर विराट नगर शासक शासन कर रहा था तथा यह माना जाता है कि इसी विराट ने विराटनगर (बैराठ) की स्थापना की थी। नृत्य की कत्थक शैली के प्रणेता मिहिर ईसा पूर्व दूसरी सदी में मत्स्य देश में ही हुआ था।
कुरू जनपद ( Kuru district ) – राज्य में अलवर का उत्तरी भाग कुरु जनपद का हिस्सा था। इसकी राजधानी इन्द्रपथ थी।
अवंती जनपद ( Avanti District ) :- अवंति महाजनपद महत्व वर्तमान मध्य प्रदेश की सीमा में था परंतु सीमावर्ती राजस्थान का क्षेत्र इसके अंतर्गत आता था।
मालवा जनपद ( Malwa district ) :- मालव सिकंदर के आक्रमण के कारण राजस्थान में प्रवेश कर गए और यहां अजमेर, टोंक, मेवाड़ के मध्यवर्ती क्षेत्र में बस गए और यहां अपनी बस्तियां स्थापित की। पहली सदी के अंत तक इस क्षेत्र में मानव ने अपनी शक्ति संगठित कर ली तथा मालव नगर को अपनी राजधानी बनाया।
इस स्थान का समीकरण टोंक जिले में स्थित नगर या ककोर्टनगर से किया जाता है। हमें राज्य में जिस जनपद के सर्वाधिक सिक्के अब तक प्राप्त हुए हैं वह मालव जनपद ही है। राज्य में मालव जनपद के सिक्के रैढ तथा नगर (टोंक) से प्रमुखता से मिले हैं। मालवो द्वारा 57 ईसवी पूर्व को मालव संवत के रूप में उपयोग किया गया। यह संवत पहले कृत फिर मालव और अंततः विक्रम संवत कहलाया।
शूरसेन जनपद ( Shoresen district ) :- इसका क्षेत्र वर्तमान पूर्वी अलवर,धौलपुर,भरतपुर तथा करौली था। इसकी राजधानी मथुरा थी। वासुदेव पुत्र कृष्ण का संबंध किस जनपद से था।
शिवि जनपद ( Shivi district ) :- मेवाड़ प्रदेश (चितौड़गढ) नामकरण की दृष्टि से द्वितीय शताब्दी में शिव जनपद (राजधानी माध्यमिका) के नाम से प्रसिद्ध था। बाद में ‘प्राग्वाट‘ नाम का प्रयोग हुआ। कालान्तर में इस भू भाग को ‘मेदपाट‘ नाम से सम्बोधित किया गया।
छठी शताब्दी ईसापूर्व सिकंदर के आक्रमण के परिणाम स्वरुप सभी लोग पंजाब से राजस्थान की ओर आय तथा चित्तौड़ के समीप नगरी नामक स्थान पर बस गए नगरी को ही मध्यमिका के नाम से जाना जाता है राज्य में शिवि जनपद के अधिकांश सिक्के नगरी क्षेत्र से ही प्राप्त हुए हैं। इस जनपद का उल्लेख पाणिनी कृत अष्टाध्यायी से मिलता है।
यौद्धेय जनपद ( Yudhayya district ) :- योद्धेय जनपद वर्तमान श्रीगंगानगर हनुमानगढ़ क्षेत्र में विस्तृत था।
राजन्य जनपद ( State level) :- राजन्य जनपद वर्तमान भरतपुर क्षेत्र में विस्तृत था।
अर्जुनायन जनपद ( Arjunaan district ) :- अर्जुनायन जनपद अलवर क्षेत्र में विस्तृत था।
शाल्व जनपद ( Shalve district ) :- शाल्व जनपद अलवर क्षेत्र में विस्तृत था।
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