आमेर का कछवाहा वंश
ऐसी मान्यता है कि कछवाहा रामचंद्र के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशधर थे सूर्यमल्ल मिश्रण के अनुसार किसी कूर्म नामक रघुवंशी शासक की संतान होने से ये कूर्मवंशीय कहलाने लगे और भाषा से उन्हें कछवाहा कहा जाने लगा, जो सूर्यवंशीय क्षत्रिय है
दुल्हराय – ढूढ़ाड़ राज्य की स्थापना
संस्थापक – दुल्हेराय
कुलदेवी – जमुवाय माता
आराध्य देवी – शिलादेवी
डॉ J.P स्ट्रेटन के कथन के अनुसार ढूढ़ाड़ शब्द से धूल भरा रेगिस्तान अभिव्यंजित है, जो दूर-दूर तक अपने शुष्क भू-भाग लिए फैला हुआ है
दुल्हराय ( दुलेराम ), ग्वालियर नरेश सोड़देव के पुत्र थे सोड़देव के पुत्र दुल्हराय का विवाह मौरा के चौहान शासक रालपसी की कन्या सुजान कँवर के साथ हुआ था
10 वी शताब्दी में दौसा नगर पर दो राजवंश चौहान राजवंश और बड़गुर्जर राज्य कर रहे थे, चौहान राजवंश ने अपनी सहायता के लिए ग्वालियर से अपने जमाता दुल्हराय को आमंत्रित किया
दुल्हराय ने कूटनीति से बढ़गुर्जरों को हराकर ढूढ़ाड़ का शासन अपने पिता सोड़देव को सौंप दिया। सोड़देव ने 996 ई. से 1006 ई. तक तथा दुल्हराय ने 1006 ई. से 1035 ई. तक ढूढ़ाड़ पर शासन किया
दुल्हेराय ने 1137 ई में दौसा पर अधिकार कर ढूढाड क्षेत्र में कछवाहा वंश की नींव रखी, दौसा कछवाहों की आरम्भिक राजधानी थी दौसा के पश्चात कछवाहा नरेशो ने जमवारामगढ़ को दूसरी राजधानी बनाया
कोकिल देव- इसने 1207 ई में मीणाओं से आमेर छीनकर आमेर को राजधानी बनाई जो जयपुर की स्थापना तक इनकी राजधानी रही।
झंडा एवं राज्य चिन्ह ( Flag and State Symbol )
जयपुर रियासत का झंडा पंचगंगा ( नीला पीला लाल हरा और काला) था इस झंडे के बीच सूर्य की आकृति है, यहां के राज्य चीन में सबसे ऊपर राधा गोविंद का चित्र है
नीचे राज्य का मूल मंत्र “यतो धर्मस्ततो जय:” लिखा है जिसका अर्थ है- ‘जहां धर्म है वहां सत्य की सदा जय होती हैं’!
कछवाहा वंश के शासक ( Ruler of Kachwah dynasty )
- हणुदेव
- जान्हड देव
- पजवन देव
- मालसी
- बिजल देव
- रामदेव
- किल्हल
- कुंतल
- जुणसी
- उदयकरण – इन्होने आमेर में शेखावाटी को मिलाया। इनके प्रपौत्र नरू द्वारा कछवाहा की नरूका शाखा चली। इनके अन्य वंशज बाला के पौत्र शेखा के वंशज शेखावत कहलाये।
- नरसिंह
- उदरण
- चन्द्रसेन
- पृथ्वीराज – 1503 – 1527 ई – इन्होनें महाराणा सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध मे बाबर के विरुद्ध भाग लिया था “बारह कोटडियो” की स्थापना के कारण कछवाहा वंश के इतिहास में इनका नाम प्रसिद्ध है।
- पूर्णमल – 1527 – 1533 ई
- भीमदेव – 1533 – 1537 ई
- रतन सिंह – 1537 – 1548 ई –
इनके चाचा सांगा ने सांगानेर की स्थापना की
Bharmal ( भारमल 1548 – 1574 ई )-
राजस्थान के प्रथम राजपूत शासक थे जिन्होंने सबसे पहले अकबर मुगलों के साथ वैवाहिक संबंध कायम किए!
हरखूबाई:- भारमल की पुत्री, इतिहास में बेगम मरियम उज्जमानी के नाम से प्रसिद्ध हुई। इनका विवाह 1562 ई. में अकबर के साथ सांभर में हुआ। जहाँगीर इन्ही का पुत्र था।जोधा बाई एक ‘उपाधि’नाम है जो अकबर एवं जहाँगीर की पत्नियों में से मुख्य पत्नी को प्रदान किया जाता था।यह उपाधि के आसिफ द्वारा निर्देशित फिल्म मुगल-ए-आजम के बाद में अधिक प्रचलित हुई है।
भारमल की सहायता से अकबर ने 1570 ईस्वी में नागौर दरबार लगाया।
भारमल की उपाधियाँ :- राजा, अकबर ने अमीर-उल-उमरा की उपाधि दीं।
Bhagvant Das ( भगवन्त दास 1574 – 1589 ई )
भारमल का जेष्ट पुत्र मानसिंह भगवान दास का दत्तक पुत्र था अकबर ने राजपूतों में पहली बार भगवंत दास को 5000 की मनसबदारी दी
मानबाई भगवानदास की पुत्री थी, 13 फरवरी, 1585 को जहाँगीर से लाहौर में विवाह होने के बाद “सुल्ताना मस्ताना” के नाम से जानी गई। खुसरों मान बाई और जहाँगीर का पुत्र था। 6 मई 1604 को मानबाई ने अफीम खाकर आत्महत्या कर ली।
भगवान दास की मृत्यु लाहौर में हुई
Man Singh ( मानसिंह 1589 – 1614 ई )
मानसिंह का जन्म 6 दिसंबर 1550 को हुआ भगवंतदास की मृत्यु के बाद 14 नवंबर 1589 में आमेर का शासन उसके दत्तक पुत्र मानसिंह ने सम्भाला आमेर राजस्थान का प्रथम राज्य था जिसने मुगलों के साथ सहयोग और समर्पण की नीति अपनाई
अकबर नें मानसिंह को राजा की उपाधि दी। अकबर के नवरत्नों में से एक मानसिंह को अकबर ने उस का सर्वोच्च 7000 का मनसब प्रदान किया था | मानसिंह ने बंगाल एवं बिहार का सूबेदार बनकर मुगल सत्ता के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया हिंदुस्तान का सबसे बड़ा मनसब 7000 और सबसे छोटा 10 मनसब
मुगल सेवा में इतने उच्च पद पर पहुंचने वाला मानसिंह राजस्थान का पहला शासक था संत दादू दयाल मान सिंह के दरबारी थे दादू दयाल एकमात्र ऐसे संत थे जिन्हें अकबर ने धार्मिक वाद विवाद के लिए एक बार फतेहपुर सीकरी आमंत्रित किया था
मानसिंह की छतरी हाड़ी पुर (आमेर) में बनी हुई है मानसिंह ने बंगाल में अकबरनगर नामक कस्बा बसाया जिसे वर्तमान में राजमहल कहा जाता है मानसिंह द्वारा पुष्कर में मान महल नामक महल का निर्माण करवाया गया था जिसमें वर्तमान में आर टी डी सी का होटल संचालित है
हल्दीघाटी के युद्ध में यह अकबर के प्रधान सेनापति थे।
मानसिंह ने बिहार में माननगर
बंगाल में अकबरनगर
आमेर के दुर्ग में शीला देवी
जगत शिरोमणि मंदिर
वृंदावन में गोविंद जी का मंदिर बनवाया
दो मुगल बादशाह अकबर और जहांगीर के साथ कार्य किया, आमेर राजा मानसिंह ने हरिनाथ, सुंदरदास एवं जगतनाथ जैसे विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया
मीनाकारी कला राजस्थान में सर्वप्रथम मानसिंह द्वारा लाई गई
मानसिंह ने महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व सम्भाला मानसिंह ने बंगाल के जेस्सोर से शीलादेवी की मूर्ति लाकर आमेर के महलो में स्थापित करवाई
मानसिंह ने अपने पुत्र जगतसिंह की याद में “जगत शिरोमणि मन्दिर” का निर्माण आमेर में करवाया 1614 में अमरावती के अचलपुर (एलिचपुर) में मृत्यु हो गयी और उसके जयेष्ट पुत्र मिर्जा राजा भावसिंह ने गद्दी सम्भाली
जगत सिंह की याद में जगत शिरोमणि मंदिर का निर्माण मान सिंह के स्थान पर उसकी पत्नी रानी कनकावती ने करवाया था
स्वतंत्र सेनापति के रूप में मानसिंह ने अपना प्रथम सैन्य अभियान 18 जून 1576 को हल्दीघाटी के युद्ध में किया था
काबुल अभियान( 1581) यह मुगलों का पहला और अंतिम अभियान था जिसमें सर्वाधिक राजपूतों ने भाग लिया था इस अभियान के उपरांत मानसिंह को काबुल का सूबेदार बना दिया गया
मानसिंह के समय निम्न ग्रंथों की रचना हुई
जगन्नाथ द्वारा- मानसिंह कीर्ति मुक्तावली
दलपत राज द्वारा- पत्र प्रशस्ति और पवन पश्चिम आदि ग्रंथों की रचना की गई
हापा बारहठ मानसिंह का राज कवि था
भावसिंह 1614 – 1621 ई
Mirza Raja Jaisingh ( मिर्जा राजा जयसिंह 1621- 67 ई )
उपाधि – मिर्ज़ा शाहजहाँ ने 1638 में रावलपिंडी में बुलाकर दी थी
मिर्जा राजा जयसिंह का दरबारी कवि बिहारी था इसने 1663 ईस्वी में बिहारी सतसई की रचना की इस पुस्तक के प्रत्येक दोहे पे जयसिंह द्वारा एक स्वर्ण मुद्रा दी जाती थी, इन्होंने 1665 ईस्वी में शिवाजी के पुरंदर दुर्ग में 44000 सैनिकों के साथ डेरा डाला
पुरंदर की संधि- 11जून 1665 शिवाजी और मिर्ज़ा राजा जयसिंह, उस समय वहां बर्नियर नामक यात्री उपस्थित थे।
इन्होंने 3 मुग़ल शासकों के समकालीन शासन किया-जहांगीर-शाहजहाँ-औरगंजेब,
मृत्यु-1667 ई में दक्षिण अभियान से लौटते हूए बुरहानपुर में
रामसिंह – 1667 – 1689 ई
बिशन सिंह – 1689 – 1699 ई
Sawai Jai Singh II ( सवाई जयसिंह द्वितीय 1699 – 1743 ई )
बिशनसिंह का पुत्र विजयसिंह (जयसिंह) के नाम से 1700 ई. में आमेर का शासक बना इतिहासकारों ने जयसिंह द्वितीय को चाणक्य की संज्ञा दी, “सवाई” की उपाधि औरंगजेब ने दी |
इन्होंने सर्वाधिक सात मुगल बादशाहों के साथ कार्य किया। मुगल सम्राटों द्वारा सवाई जयसिंह को तीन बार मालवा का सूबेदार नियुक्त किया गया
औरंगजेब की मृत्य के बाद उत्तराधिकारी संघर्ष में शहजादे मुअज्जम (बहादुरशाह) की विजय हुयी लेकिन जयसिंह में आजम का साथ दिया था जिससे नाराज होकर बादशाह मुअज्जम (बहादुरशाह) ने जयसिंह के छोटे भाई को आमेर का शासक बनाया तथा आमेर का नाम “मोमिनाबाद” रखा
सवाई जयसिंह ने मराठो की बढती शक्ति के विरुद्ध राजपूत शासको को संगठित करने के लिए हुरडा नामक स्थान पर 17 जुलाई 1734 को राजपुताना के शासको का सम्मेलन बुलाया
जिसकी अध्यक्षता महाराणा जगतसिंह ने की , इसमें सहयोग का समझौता हुआ लेकिन पालन नही हो सका सवाई जयसिंह ने 1727 ई. को जयनगर (जयपुर) की स्थापना की इसके वास्तुविद विद्याधर भट्टाचार्य थे
सवाई जयसिंह ने जयपुर , दिल्ली , उज्जैन , बनारस एवं मथुरा में वैधशालाओ (जन्तर-मंतर) का निर्माण करवाया सवाई जयसिंह ने नक्षत्रो की शुद्ध सारणी “जीज मुहम्मदशाही” बनाई और मुगल शासक मुहम्मदशाह को समर्पित की “जयसिंह कारिका” (ज्योतिष ग्रन्थ) की रचना की
सवाई जयसिंह के दरबारी “पुंडरिक रत्नाकर” ने जयसिंह कल्पमुद्रम की रचना की
जयपुर पहला नगर में जो नक्शों के आधार पर बसाया गया सवाई जयसिंह अंतिम हिंदू राजा थे जिन्होंने राजसूर्य/अश्वमेध यज्ञ सिटी पैलेस के चंद्र महल में करवाया।(इस यज्ञ के राजपुरोहित-पुण्डरीक रत्नाकर थे।)
ब्राह्मणों के रहने हेतु सवाई जयसिंह ने जल महल का निर्माण करवाया। जयपुर में कनक वृंदावन का निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गयासवाई जयसिंह द्वितीय ने विधवा पुनर्विवाह हेतु नियम बनाने का प्रयत्न किया। सवाई जयसिंह के शासन काल में सेना की भर्ती और वेतन के लिए बख्शी अधिकारी उत्तरदायी था।
Sawai Ishwari Singh ( सवाई ईश्वरी सिंह 1743-50 ई )
महाराजा सवाई जयसिंह का पुत्र ईश्वरीसिंह 1743 ईस्वी में जयपुर का शासक बना ईश्वरी सिंह के शासक बनने से नाराज होकर उसके भाई माधोसिंह ने बुंदी और मराठो की संयुक्त सेना की सहायता से जयपुर पर आक्रमण किया राजमहल (टोंक) के युद्ध (1747 ई.) में ईश्वरीसिंह विजयी रहे इसमें ईश्वरीसिंह जीता इस खुशी की में जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में 7 मंजिला सरगासूली बनवाई।
इस विजय के उपलक्ष्य में जयपुर में ईसरलाट (सरगासूली) का निर्माण करवाया 1748 ई. के बगरू के युद्ध में ईश्वरीसिंह हार गये एवं 1750 ई. में मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर के आक्रमण से परेशान होकर ईश्वरीसिंह ने आत्महत्या कर ली |
Maharaja Sawai Madhu Singh 1 ( महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम 1750-68 ई )
ईश्वरी सिंह के पश्चात जयपुर के शासक बने सवाई माधोसिंह प्रथम को मराठो की भारी-भरकम रकम की मांग पुरी न करने पर मराठा सैनिको ने जयपुर में लूटमार की जिसके कारण भड़की जनता ने मराठा सैनिको को मार डाला |
बादशाह अहमदशाह द्वारा रणथ्म्भोर का दुर्ग माधोसिंह को सौंपने से नाराज होकर कोटा के महाराव जालिम सिंह ने जयपुर पर आक्रमण किया
भटवाडा युद्ध – दोनों के मध्य 1761 में भटवाडा का युद्ध हुआ जिसमे जयपुर की सेना हार गयी
सवाई माधोसिंह ने रणथ्म्बौर के निकट सवाई माधोपुर बसाया व जयपुर में मोती डूंगरी के महलो (तख्तेशाही महल) का निर्माण करवाया , 18 शताब्दी में माधोसिंह प्रथम ने अपने राज्य खिलाड़ियों को संरक्षण दिया। उन्हें दूसरे देश के स्थानों में प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु भेजा।
महाराजा पृथ्वीराज – 1868 – 1878 ई
Sawai Pratap Singh ( सवाई प्रताप सिंह 1778-03 ई )
सवाई प्रतापसिंह ने शासनकाल में जयपुर एवं जोधपुर राज्य की संयुक्त सेना ने तुंगा के युद्ध (1787 ई.) में मराठो को हराया विद्वानों के आश्रय दाता प्रतापसिंह स्वयं “ब्रजनिधि” के उपनाम से काव्य रचना करते थे
ब्रजनिधि ग्रन्थावली इनकी रचनाओं का संग्रह है सवाई प्रतापसिंह के दरबार में बाईसी भरमार थी। अर्थात 22 कवि 22 ज्योतिषी 22 संगीतज्ञ एवं 22 विषय विशेषज्ञ के रूप में गंधर्व बाईसी उपस्थित थे। इनमे ब्रजपाल भट्ट , द्वारकादास , उस्ताद चाँद खा (प्रतापसिंह के संगीत गुरु) एवं गणपत भारती (काव्य गुरु) प्रमुख थे |
इसने जयपुर में एक संगीत सम्मेलन का आयोजन करवाया जिसके अध्यक्ष देदऋषि ब्रजपाल भट्ट थे। इस सम्मेलन में राधा गोविंद संगीत सार नामक ग्रंथ की रचना की गई।
सवाई प्रतापसिंह ने “राधा गोविन्द संगीतसार” नामक संगीत ग्रन्थ की रचना करवाई, सवाई प्रतापसिंह ने जयपुर में 1799 ई. में हवामहल का निर्माण करवाया जिसकी आकृति उनके आराध्य देवता श्रीकृष्ण के मुकुट के समान बनाई गयी
तुंगा के मैदान में सिंधिया को हराया। जयपुर के इतिहास में सवाई प्रताप सिंह को कला संगीत एवं साहित्य का आश्रयदाता माना जाता है।
Jagat Singh II ( जगत सिंह द्वितीय 1803-18 ई )
जगतसिंह के शासनकाल में उदयपुर महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी को लेकर जयपुर एवं जोधपुर के मध्य गींगोली का युद्ध हुआ।जिसमे जयपुर की सेना विजयी रही जगत सिंह को जयपुर का बदनाम शासक के रूप में जाना जाता है। जगत सिंह की प्रेमिका रसकपूर नामक वेश्या के कारण।
मराठो एवं पिण्डारियो के आक्रमण से परेशान होकर 1818 को ईस्ट इंडिया कम्पनी से जगतसिंह ने संधि कर ली 21 दिसम्बर 1818 को देहांत हो गया |
सवाई जयसिंह तृतीय – 1818- 1835 ई
Maharaja Ram Singh II ( महाराजा रामसिंह द्वितीय 1835-80 ई )
रामिसंह मात्र 16 वर्ष की आयु में राजा बना वयस्क होने पर जयपुर का प्रशासन अंग्रेजो ने सम्भाला 1843 में लार्ड लुडलो प्रशासक बनकर आये , उन्होंने सामाजिक कुरीतियाँ सती प्रथा , दास प्रथा , कन्या वध एवं दहेज प्रथा पर रोक लगाई
रामसिंह द्वितीय ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों की तन मन धन से सहायता की उसके बदले में इन्हीं सितारे ए हिंद की उपाधि व कोटपूतली का परगना मिला।
इन्होंने मदरसा ए हुनरी (राजस्थान ऑफ आर्ट्स), महाराजा कॉलेज, संस्कृत कॉलेज, रामप्रकाश थियेटर (राजस्थान का सबसे प्राचीन) 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स की यात्रा की स्मृति में अल्बर्ट हाॅल बनवाया। अल्बर्ट हॉल का शिलान्यास प्रिंस अल्बर्ट एडवर्ड सप्तम प्रिंस ऑफ वेल्स ने किया।
इसके वास्तुकार सर स्टीवन थे जयपुर शहर को 1876 ईस्वी में प्रिंस अल्बर्ट के आगमन की खुशी में रामसिंह द्वितीय ने पिंक रंग से पुतवाया।
रामसिंह द्वितीय को जयपुर का समाज सुधारक शासक कहा जाता है। 1876 ई. प्रिंस ऑफ़ वेल्स अल्बर्ट की स्मृति में जयपुर में अल्बर्ट हॉल का शिलान्यास करवाया | रामसिंह द्वितीय ने जयपुर में “मदरसा हुनरी” (महाराजा स्कूल ऑफ़ आर्ट) का निर्माण करवाया | इस संस्था का दूसरा नाम “तस्वीरा रो कारखानों” था |
Maharaja Madhosinh II ( महाराजा माधोसिंह द्वितीय 1880-1922 ई )
यह प्रिंस अलबर्ट एडवर्ड सप्तम के राज्य अभिषेक में भाग लेने इंग्लैंड गए। इस यात्रा के दौरान चांदी के दो पात्रों में गंगाजल भरकर ले गए जो आज भी सिटी पैलेस में मौजूद है।
इन्होंने पंडित मदनमोहन मालवीय को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय हेतु पाँच लाख रूपये दान में दिए।
Mansingh II ( मानसिंह द्वितीय 1922-49 ई )
30 मार्च 1949 के पश्चात इन्हें आजीवन राजप्रमुख बनाया गया। राजस्थान के प्रथम उच्च न्यायालय का उद्घाटन महाराजा सवाई मानसिंह के द्वारा किया गया।
महारानी गायत्री देवी ने गर्ल्स स्कूल राजस्थान का पहला महिला कन्या विश्वविद्यालय की स्थापना जयपुर में की। राजस्थान की प्रथम महिला लोकसभा सदस्य गायत्री देवी (जयपुर) थी। “एक राजकुमारी की यादें” महारानी गायत्री देवी की आत्मकथा का शीर्षक है।
Sawai Bhavani Singh ( सवाई भवानी सिंह )
यह इस वंश के अंतिम शासक थे जिनका निधन 16 अप्रैल 2011 को हुआ!
अलवर का कछवाहा वश ( Alwar Qachwaha Dynasty )
अलवर राज्य का संस्थापक प्रतापसिंह(1775 – 1790) था जो आमेर नरेश महाराज उदयकर्ण के बड़े पुत्र बरसिंह की 15 वीं पीढ़ी में था।प्रतापसिंह ने 25 दिसम्बर, 1775 ई. को अलवर राज्य की स्थापना की। अलवर के राजा कछवाहा के राजवंश की लालावत नरुका की शाखा से सम्बन्धित थे।
26 दिसंबर 1790 को राव राजा प्रतापसिंह जी के निधन के बाद बख्तावरसिंह कछवाह (1790 – 1814)वंश की नरुका शाखा के राज्य अलवर के द्वितीय शासक बने अलवर के बकेत्श्वर महादेव का विशाल मंदिर बख्तावर सिंह द्वारा निर्मित है
1803 ई बख्तावर सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि कर ली
विनय सिंह – ये 1815 ई में अलवर के राजा बने
मूसी महारानी की छतरी – इस दुमंजिला भवन का निर्माण विनय सिंह ने महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी के सम्मान में ईसा पश्चात वर्ष 1815 में करवाया था।
अलवर का संग्रहालय – 1837 में महाराजा विनयसिंह ने कुतुबखाना पुस्तकालय की स्थापना की।?
सिलीसेढ़- इस झील के मध्य स्थित टापू पर महाराजा विनयसिंह ने अपनी रानी शिला के लिए 1844 ई. में छ: मंजिला महल बनवाया।?
1857 ई की क्रान्ति के समय यह अलवर के राजा थे।
राजा जयसिंह – विनय सिंह के बाद शक्तिशाली व न्यायप्रिय शासक। शहर के सबसे करीब जय समन्द झील है। इसका निर्माण अलवर के महाराज जय सिंह ने 1910 में पिकनिक के लिए करवाया था।
सरिस्का पैलेस- इसका निर्माण महाराजा जयसिंह ने ड्यूक ऑफ एडिनब्रा की शिकार-यात्रा के उपलक्ष में करवाया।?
विजय मंदिर महल- 1918 में जयसिंह द्वारा निर्मित। इसमें सीताराम जी का प्रसिद्ध मन्दिर है। ?
जयसिंह ने ही नरेन्द्र मण्डल का नामकरण किया था। जयसिंह और रॉल्स रॉयस का विवाद विश्व प्रसिद्ध है। 1933 ई जयसिंह को तिजारा दंगो के बाद अंग्रेजों ने पद से हटा दिया। इसके बाद तेजसिंह शासक बने। जो एकीकरण तक शासक बने रहे।
प्रतापसिंह नरुका – मोहब्बतसिहं का पुत्र जिसने 1775 मे अलवर राज्य की स्थापना की। प्रारम्भ मे वह जयपुर नरेश की सेवा मे था।जब 1755मे मराठों ने रणथंभौर दुर्ग को घेर लिया तब उसने सैनिक सहायता देकर दुर्ग को मराठों के हाथों मे जाने से बचाया।सन् 1765 मे इसने मावणडा़ युद्ध मे भरतपुर नरेश जवाहरसिंह जाट के विरुद्ध जयपुर नरेंश माधोसिंह को सहायता दी थी।
अत: बादशाह ने 1774 मे इसको रावराजा बहादुर की उपाधि तथा पंज हजारी मनसब दी थी। सन् 1775 की 25 दिसंबर को वह एक स्वतंत्र शासक बन गया।
Kachwah dynasty important facts-
दूल्हा राय कछवाहा वंश का संस्थापक था, दूल्हा राय ने मंच या मांची का नाम बदलकर जमवारामगढ़ किया इसे कछवाहों की अगली राजधानी बनाया
जमवारामगढ़ के पश्चात दूल्हा राय ने खोह को अपनी राजधानी बनाया
राजदेव ने 1237मे आमेर दुर्ग के सबसे प्राचीन महल कदमी महल का निर्माण करवाया था यहां पर कछवाहा शासकों का राजतिलक होता था
पृथ्वीराज ने अपने राज्य को अपने 12 पुत्र में विभाजित कर बारह कोटड़ी व्यवस्था प्रारंभ की थी
पृथ्वीराज की रानी बाला बाई ने आमेर में लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण करवाया था
पृथ्वीराज कछवाहा शासक चंद्रसेन का पुत्र था जिसने 1527 में खानवा के युद्ध में राणा सांगा का समर्थन किया था
पृथ्वीराज के समय रामानंदी संप्रदाय के संत रामानंदी संप्रदाय के संत कृष्णदास पयहारी ने आमेर के पास गलता पीठ की स्थापना की
पृथ्वीराज के गुरु चतुर नाथ थे जो कापालिक संप्रदाय के अनुयाई थे
रामानुज संप्रदाय के संत कृष्णदास पयहारी ने गुरु चतुर नाथ को शास्त्राराथ में पराजित किया था
पृथ्वीराज के पुत्र सांगा ने सांगानेर कस्बा बसाया था सांगानेर क्षेत्र को ही मोजमाबाद के नाम से भी जाना जाता था
मंजनू का नामक व्यक्ति द्वारा ही दिसंबर 1556 में अकबर और भारमल की मित्रता कराई गई थी
भारमल ने आमेर दुर्ग का निर्माण प्रारंभ करवाया था भगवान दास ने कुंवर और शासक दोनों ही रूप में अकबर की सेवा की थी
अकबर द्वारा चलाए गए दीन ए इलाही धर्म (1576)को मानने से भगवान दास और मानसिंह दोनों ने इनकार कर दिया था
अकबर के सेनापति के रूप में भगवान दास ने 1586 में कश्मीर को पहली बार जीतकर मुगल साम्राज्य का अंग बना दिया था
औरंगजेब की मृत्य के बाद उत्तराधिकारी संघर्ष में शहजादे मुअज्जम (बहादुरशाह) की विजय हुयी लेकिन जयसिंह में आजम का साथ दिया था जिससे नाराज होकर बादशाह मुअज्जम (बहादुरशाह) ने जयसिंह के छोटे भाई को आमेर का शासक बनाया तथा आमेर का नाम “मोमिनाबाद” रखा
सवाई जयसिंह ने मराठो की बढती शक्ति के विरुद्ध राजपूत शासको को संगठित करने के लिए हुरडा नामक स्थान पर 17 जुलाई 1734 को राजपुताना के शासको का सम्मेलन बुलाया
जिसकी अध्यक्षता महाराणा जगतसिंह ने की , इसमें सहयोग का समझौता हुआ लेकिन पालन नही हो सका सवाई जयसिंह ने 1727 ई. को जयनगर (जयपुर) की स्थापना की इसके वास्तुविद विद्याधर भट्टाचार्य थे
सवाई जयसिंह ने जयपुर , दिल्ली , उज्जैन , बनारस एवं मथुरा में वैधशालाओ (जन्तर-मंतर) का निर्माण करवाया सवाई जयसिंह ने नक्षत्रो की शुद्ध सारणी “जीज मुहम्मदशाही” बनाई और मुगल शासक मुहम्मदशाह को समर्पित की “जयसिंह कारिका” (ज्योतिष ग्रन्थ) की रचना की
सवाई जयसिंह के दरबारी “पुंडरिक रत्नाकर” ने जयसिंह कल्पमुद्रम की रचना की
जयपुर पहला नगर में जो नक्शों के आधार पर बसाया गया सवाई जयसिंह अंतिम हिंदू राजा थे जिन्होंने राजसूर्य/अश्वमेध यज्ञ सिटी पैलेस के चंद्र महल में करवाया।(इस यज्ञ के राजपुरोहित-पुण्डरीक रत्नाकर थे।)
ब्राह्मणों के रहने हेतु सवाई जयसिंह ने जल महल का निर्माण करवाया। जयपुर में कनक वृंदावन का निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गयासवाई जयसिंह द्वितीय ने विधवा पुनर्विवाह हेतु नियम बनाने का प्रयत्न किया। सवाई जयसिंह के शासन काल में सेना की भर्ती और वेतन के लिए बख्शी अधिकारी उत्तरदायी था।
Sawai Ishwari Singh ( सवाई ईश्वरी सिंह 1743-50 ई )
महाराजा सवाई जयसिंह का पुत्र ईश्वरीसिंह 1743 ईस्वी में जयपुर का शासक बना ईश्वरी सिंह के शासक बनने से नाराज होकर उसके भाई माधोसिंह ने बुंदी और मराठो की संयुक्त सेना की सहायता से जयपुर पर आक्रमण किया राजमहल (टोंक) के युद्ध (1747 ई.) में ईश्वरीसिंह विजयी रहे इसमें ईश्वरीसिंह जीता इस खुशी की में जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में 7 मंजिला सरगासूली बनवाई।
इस विजय के उपलक्ष्य में जयपुर में ईसरलाट (सरगासूली) का निर्माण करवाया 1748 ई. के बगरू के युद्ध में ईश्वरीसिंह हार गये एवं 1750 ई. में मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर के आक्रमण से परेशान होकर ईश्वरीसिंह ने आत्महत्या कर ली |
Maharaja Sawai Madhu Singh 1 ( महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम 1750-68 ई )
ईश्वरी सिंह के पश्चात जयपुर के शासक बने सवाई माधोसिंह प्रथम को मराठो की भारी-भरकम रकम की मांग पुरी न करने पर मराठा सैनिको ने जयपुर में लूटमार की जिसके कारण भड़की जनता ने मराठा सैनिको को मार डाला |
बादशाह अहमदशाह द्वारा रणथ्म्भोर का दुर्ग माधोसिंह को सौंपने से नाराज होकर कोटा के महाराव जालिम सिंह ने जयपुर पर आक्रमण किया
भटवाडा युद्ध – दोनों के मध्य 1761 में भटवाडा का युद्ध हुआ जिसमे जयपुर की सेना हार गयी
सवाई माधोसिंह ने रणथ्म्बौर के निकट सवाई माधोपुर बसाया व जयपुर में मोती डूंगरी के महलो (तख्तेशाही महल) का निर्माण करवाया , 18 शताब्दी में माधोसिंह प्रथम ने अपने राज्य खिलाड़ियों को संरक्षण दिया। उन्हें दूसरे देश के स्थानों में प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु भेजा।
महाराजा पृथ्वीराज – 1868 – 1878 ई
Sawai Pratap Singh ( सवाई प्रताप सिंह 1778-03 ई )
सवाई प्रतापसिंह ने शासनकाल में जयपुर एवं जोधपुर राज्य की संयुक्त सेना ने तुंगा के युद्ध (1787 ई.) में मराठो को हराया विद्वानों के आश्रय दाता प्रतापसिंह स्वयं “ब्रजनिधि” के उपनाम से काव्य रचना करते थे
ब्रजनिधि ग्रन्थावली इनकी रचनाओं का संग्रह है सवाई प्रतापसिंह के दरबार में बाईसी भरमार थी। अर्थात 22 कवि 22 ज्योतिषी 22 संगीतज्ञ एवं 22 विषय विशेषज्ञ के रूप में गंधर्व बाईसी उपस्थित थे। इनमे ब्रजपाल भट्ट , द्वारकादास , उस्ताद चाँद खा (प्रतापसिंह के संगीत गुरु) एवं गणपत भारती (काव्य गुरु) प्रमुख थे |
इसने जयपुर में एक संगीत सम्मेलन का आयोजन करवाया जिसके अध्यक्ष देदऋषि ब्रजपाल भट्ट थे। इस सम्मेलन में राधा गोविंद संगीत सार नामक ग्रंथ की रचना की गई।
सवाई प्रतापसिंह ने “राधा गोविन्द संगीतसार” नामक संगीत ग्रन्थ की रचना करवाई, सवाई प्रतापसिंह ने जयपुर में 1799 ई. में हवामहल का निर्माण करवाया जिसकी आकृति उनके आराध्य देवता श्रीकृष्ण के मुकुट के समान बनाई गयी
तुंगा के मैदान में सिंधिया को हराया। जयपुर के इतिहास में सवाई प्रताप सिंह को कला संगीत एवं साहित्य का आश्रयदाता माना जाता है।
Jagat Singh II ( जगत सिंह द्वितीय 1803-18 ई )
जगतसिंह के शासनकाल में उदयपुर महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी को लेकर जयपुर एवं जोधपुर के मध्य गींगोली का युद्ध हुआ।जिसमे जयपुर की सेना विजयी रही जगत सिंह को जयपुर का बदनाम शासक के रूप में जाना जाता है। जगत सिंह की प्रेमिका रसकपूर नामक वेश्या के कारण।
मराठो एवं पिण्डारियो के आक्रमण से परेशान होकर 1818 को ईस्ट इंडिया कम्पनी से जगतसिंह ने संधि कर ली 21 दिसम्बर 1818 को देहांत हो गया |
सवाई जयसिंह तृतीय – 1818- 1835 ई
Maharaja Ram Singh II ( महाराजा रामसिंह द्वितीय 1835-80 ई )
रामिसंह मात्र 16 वर्ष की आयु में राजा बना वयस्क होने पर जयपुर का प्रशासन अंग्रेजो ने सम्भाला 1843 में लार्ड लुडलो प्रशासक बनकर आये , उन्होंने सामाजिक कुरीतियाँ सती प्रथा , दास प्रथा , कन्या वध एवं दहेज प्रथा पर रोक लगाई
रामसिंह द्वितीय ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों की तन मन धन से सहायता की उसके बदले में इन्हीं सितारे ए हिंद की उपाधि व कोटपूतली का परगना मिला।
इन्होंने मदरसा ए हुनरी (राजस्थान ऑफ आर्ट्स), महाराजा कॉलेज, संस्कृत कॉलेज, रामप्रकाश थियेटर (राजस्थान का सबसे प्राचीन) 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स की यात्रा की स्मृति में अल्बर्ट हाॅल बनवाया। अल्बर्ट हॉल का शिलान्यास प्रिंस अल्बर्ट एडवर्ड सप्तम प्रिंस ऑफ वेल्स ने किया।
इसके वास्तुकार सर स्टीवन थे जयपुर शहर को 1876 ईस्वी में प्रिंस अल्बर्ट के आगमन की खुशी में रामसिंह द्वितीय ने पिंक रंग से पुतवाया।
रामसिंह द्वितीय को जयपुर का समाज सुधारक शासक कहा जाता है। 1876 ई. प्रिंस ऑफ़ वेल्स अल्बर्ट की स्मृति में जयपुर में अल्बर्ट हॉल का शिलान्यास करवाया | रामसिंह द्वितीय ने जयपुर में “मदरसा हुनरी” (महाराजा स्कूल ऑफ़ आर्ट) का निर्माण करवाया | इस संस्था का दूसरा नाम “तस्वीरा रो कारखानों” था |
Maharaja Madhosinh II ( महाराजा माधोसिंह द्वितीय 1880-1922 ई )
यह प्रिंस अलबर्ट एडवर्ड सप्तम के राज्य अभिषेक में भाग लेने इंग्लैंड गए। इस यात्रा के दौरान चांदी के दो पात्रों में गंगाजल भरकर ले गए जो आज भी सिटी पैलेस में मौजूद है।
इन्होंने पंडित मदनमोहन मालवीय को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय हेतु पाँच लाख रूपये दान में दिए।
Mansingh II ( मानसिंह द्वितीय 1922-49 ई )
30 मार्च 1949 के पश्चात इन्हें आजीवन राजप्रमुख बनाया गया। राजस्थान के प्रथम उच्च न्यायालय का उद्घाटन महाराजा सवाई मानसिंह के द्वारा किया गया।
महारानी गायत्री देवी ने गर्ल्स स्कूल राजस्थान का पहला महिला कन्या विश्वविद्यालय की स्थापना जयपुर में की। राजस्थान की प्रथम महिला लोकसभा सदस्य गायत्री देवी (जयपुर) थी। “एक राजकुमारी की यादें” महारानी गायत्री देवी की आत्मकथा का शीर्षक है।
Sawai Bhavani Singh ( सवाई भवानी सिंह )
यह इस वंश के अंतिम शासक थे जिनका निधन 16 अप्रैल 2011 को हुआ!
अलवर का कछवाहा वश ( Alwar Qachwaha Dynasty )
अलवर राज्य का संस्थापक प्रतापसिंह(1775 – 1790) था जो आमेर नरेश महाराज उदयकर्ण के बड़े पुत्र बरसिंह की 15 वीं पीढ़ी में था।प्रतापसिंह ने 25 दिसम्बर, 1775 ई. को अलवर राज्य की स्थापना की। अलवर के राजा कछवाहा के राजवंश की लालावत नरुका की शाखा से सम्बन्धित थे।
26 दिसंबर 1790 को राव राजा प्रतापसिंह जी के निधन के बाद बख्तावरसिंह कछवाह (1790 – 1814)वंश की नरुका शाखा के राज्य अलवर के द्वितीय शासक बने अलवर के बकेत्श्वर महादेव का विशाल मंदिर बख्तावर सिंह द्वारा निर्मित है
1803 ई बख्तावर सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि कर ली
विनय सिंह – ये 1815 ई में अलवर के राजा बने
मूसी महारानी की छतरी – इस दुमंजिला भवन का निर्माण विनय सिंह ने महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी के सम्मान में ईसा पश्चात वर्ष 1815 में करवाया था।
अलवर का संग्रहालय – 1837 में महाराजा विनयसिंह ने कुतुबखाना पुस्तकालय की स्थापना की।?
सिलीसेढ़- इस झील के मध्य स्थित टापू पर महाराजा विनयसिंह ने अपनी रानी शिला के लिए 1844 ई. में छ: मंजिला महल बनवाया।?
1857 ई की क्रान्ति के समय यह अलवर के राजा थे।
राजा जयसिंह – विनय सिंह के बाद शक्तिशाली व न्यायप्रिय शासक। शहर के सबसे करीब जय समन्द झील है। इसका निर्माण अलवर के महाराज जय सिंह ने 1910 में पिकनिक के लिए करवाया था।
सरिस्का पैलेस- इसका निर्माण महाराजा जयसिंह ने ड्यूक ऑफ एडिनब्रा की शिकार-यात्रा के उपलक्ष में करवाया।?
विजय मंदिर महल- 1918 में जयसिंह द्वारा निर्मित। इसमें सीताराम जी का प्रसिद्ध मन्दिर है। ?
जयसिंह ने ही नरेन्द्र मण्डल का नामकरण किया था। जयसिंह और रॉल्स रॉयस का विवाद विश्व प्रसिद्ध है। 1933 ई जयसिंह को तिजारा दंगो के बाद अंग्रेजों ने पद से हटा दिया। इसके बाद तेजसिंह शासक बने। जो एकीकरण तक शासक बने रहे।
प्रतापसिंह नरुका – मोहब्बतसिहं का पुत्र जिसने 1775 मे अलवर राज्य की स्थापना की। प्रारम्भ मे वह जयपुर नरेश की सेवा मे था।जब 1755मे मराठों ने रणथंभौर दुर्ग को घेर लिया तब उसने सैनिक सहायता देकर दुर्ग को मराठों के हाथों मे जाने से बचाया।सन् 1765 मे इसने मावणडा़ युद्ध मे भरतपुर नरेश जवाहरसिंह जाट के विरुद्ध जयपुर नरेंश माधोसिंह को सहायता दी थी।
अत: बादशाह ने 1774 मे इसको रावराजा बहादुर की उपाधि तथा पंज हजारी मनसब दी थी। सन् 1775 की 25 दिसंबर को वह एक स्वतंत्र शासक बन गया।
Kachwah dynasty important facts-
दूल्हा राय कछवाहा वंश का संस्थापक था, दूल्हा राय ने मंच या मांची का नाम बदलकर जमवारामगढ़ किया इसे कछवाहों की अगली राजधानी बनाया
जमवारामगढ़ के पश्चात दूल्हा राय ने खोह को अपनी राजधानी बनाया
राजदेव ने 1237मे आमेर दुर्ग के सबसे प्राचीन महल कदमी महल का निर्माण करवाया था यहां पर कछवाहा शासकों का राजतिलक होता था
पृथ्वीराज ने अपने राज्य को अपने 12 पुत्र में विभाजित कर बारह कोटड़ी व्यवस्था प्रारंभ की थी
पृथ्वीराज की रानी बाला बाई ने आमेर में लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण करवाया था
पृथ्वीराज कछवाहा शासक चंद्रसेन का पुत्र था जिसने 1527 में खानवा के युद्ध में राणा सांगा का समर्थन किया था
पृथ्वीराज के समय रामानंदी संप्रदाय के संत रामानंदी संप्रदाय के संत कृष्णदास पयहारी ने आमेर के पास गलता पीठ की स्थापना की
पृथ्वीराज के गुरु चतुर नाथ थे जो कापालिक संप्रदाय के अनुयाई थे
रामानुज संप्रदाय के संत कृष्णदास पयहारी ने गुरु चतुर नाथ को शास्त्राराथ में पराजित किया था
पृथ्वीराज के पुत्र सांगा ने सांगानेर कस्बा बसाया था सांगानेर क्षेत्र को ही मोजमाबाद के नाम से भी जाना जाता था
मंजनू का नामक व्यक्ति द्वारा ही दिसंबर 1556 में अकबर और भारमल की मित्रता कराई गई थी
भारमल ने आमेर दुर्ग का निर्माण प्रारंभ करवाया था भगवान दास ने कुंवर और शासक दोनों ही रूप में अकबर की सेवा की थी
अकबर द्वारा चलाए गए दीन ए इलाही धर्म (1576)को मानने से भगवान दास और मानसिंह दोनों ने इनकार कर दिया था
अकबर के सेनापति के रूप में भगवान दास ने 1586 में कश्मीर को पहली बार जीतकर मुगल साम्राज्य का अंग बना दिया था
आमेर का कछवाहा वंश | Kachwaha Vansh History In Hindi लेख को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद, अगर आप हमारे व्हात्सप्प ग्रुप में जुड़ना चाहते है तो यहाँ पर क्लिक करे – क्लिक हियर |