राजस्थान में राजपूत वंश

सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, यदुवंशी, अग्निवंशी।

“राजपूत” शब्द की व्युत्पत्ति राजपूतों की उत्पत्ति के विभिन्न मत और उनकी समीक्षा

अग्निवंशीय मत

सूर्य तथा चंद्रवंशीय मत

विदेशी वंश का मत

गुर्जर वंश का मत

ब्राह्मणवंशीय मत

वैदिक आर्य वंश का मत

राजपूतों की विदेशी उत्पत्ति का सिद्धांत ( Rajput Origin )

(1) विदेशी सिद्धान्त ( Foreign principle )

राजस्थान के इतिहास को लिखने का श्रेय कर्नल जेम्स टॉड को दिया जाता है, कर्नल टॉड को हम राजस्थान इतिहास का जनक व राजस्थान इतिहास के पितामह भी कहते हैं कर्नल टॉड ने अपने ग्रंथ ‘दे एनल्स एंड एंटिक्विटी ऑफ राजस्थान’ में राजपूतों को विदेशी जातियों से उत्पन्न होना बताया, कर्नल टॉड ने विदेशी जातियों में शक, कुषाण, सिर्थियन, आदि विदेशी जातियों के सम्मिश्रण से राजपूतों की उत्पत्ति हुई,

उनका मानना था कि जिस प्रकार यह विदेशी जातियां आक्रमण व युद्ध में विश्वास रखती थी, ठीक उसी प्रकार राजस्थान के राजपूत शासक भी युद्ध में विश्वास रखते थे इस कारण इस कारण कर्नल टॉड ने राजपूतों को विदेशियों की संतान कहा, इस मत का समर्थन इतिहासकार क्रुक महोदय ने भी किया!!!

(2) अग्निकुंड का सिद्धांत

लेखक चंद्रवरदाई ने अपने ग्रंथ पृथ्वीराज रासो में राजपूतों की उत्पत्ति का अग्नि कुंड का सिद्धांत प्रतिपादित किया  इनकी उत्पत्ति के बारे में उन्होंने बताया कि माउंट आबू पर गुरु वशिष्ट का आश्रम था, गुरु वशिष्ठ जब यज्ञ करते थे तब कुछ दैत्यो द्वारा उस यज्ञ को असफल कर दिया जाता था!  तथा उस यज्ञ में अनावश्यक वस्तुओं को डाल दिया जाता था

जिसके कारण यज्ञ दूषित हो जाता था गुरु वशिष्ठ ने इस समस्या से निजात पाने के लिए अग्निकुंड अग्नि से 3 योद्धाओं को प्रकट किया इन योद्धाओं में परमार, गुर्जर, प्रतिहार, तथा चालुक्य( सोलंकी) पैदा हुए, लेकिन समस्या का निराकरण नहीं हो पाया इस प्रकार गुरु वशिष्ठ ने पुनः एक बार यज्ञ किया और उस यज्ञ में एक वीर योद्धा अग्नि में प्रकट किया यही अंतिम योद्धा ,चौहान, कहलाया इस प्रकार चंद्रवरदाई ने राजपूतों की उत्पत्ति अग्निकुंड से बताई

नोट-  माउंट आबू सिरोही में वशिष्ठ कुण्ड व ग्ररू वशिष्ठ आश्रम स्थित है

राजपूतों की उत्पत्ति ( Rajput Origin )

अग्निवंशी मत ( Agnostic vote )

राजपूताना के इतिहास के सन्दर्भ में राजपूतों की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का अध्ययन बड़ा महत्त्व का है। राजपूतों का विशुद्ध जाति से उत्पन्न होने के मत को बल देने के लिए उनको अग्निवंशीय बताया गया है।

इस मत का प्रथम सूत्रपात चन्दबरदाई के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘पृथ्वीराजरासो’ से होता है। उसके अनुसार राजपूतों के चार वंश प्रतिहार, परमार, चालुक्य और चौहान ऋषि वशिष्ठ के यज्ञ कुण्ड से राक्षसों के संहार के लिए उत्पन्न किये गये।

इस कथानक का प्रचार 16 वीं से 18वीं सदी तक भाटों द्वारा खूब होता रहा। मुहणोत नैणसी और सूर्यमल्ल मिसण ने इस आधार को लेकर उसको और बढ़ावे के साथ लिखा।

परन्तु इतिहासकारों के अनुसार ‘अग्निवंशीय सिद्धान्त’ पर विश्वास करना उचित नहीं है क्योंकि सम्पूर्ण कथानक बनावटी व अव्यावहारिक है। ऐसा प्रतीत होता है कि चन्दबरदाई ऋषि वशिष्ठ द्वारा अग्नि से इन वंशों की उत्पत्ति से यह अभिव्यक्त करता है कि जब विदेशी सत्ता से संघर्ष करने की आवश्यकता हुई तो इन चार वंश के राजपूतों ने शत्रुओं से मुकाबले हेतु स्वयं को सजग कर लिया।

गौरीशकंर हीराचन्द ओझा, सी.वी.वैद्य, दशरथ शर्मा, ईश्वरी प्रसाद इत्यादि इतिहासकारों ने इस मत को निराधार बताया है।

गौरीशंकर हीराचन्द ओझा राजपूतों को सूर्यवंशीय और चन्द्रवंशीय बताते हैं। अपने मत की पुष्टि के लिए उन्होंने कई शिलालेखों और साहित्यिक ग्रंथों के प्रमाण दिये हैं, जिनके आधार पर उनकी मान्यता है कि राजपूत प्राचीन क्षत्रियों के वंशज हैं।

राजपूतों की उत्पत्ति से सम्बन्धित यही मत सर्वाधिक लोकप्रिय है।

राजपूताना के प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने राजपूतों को शक और सीथियन बताया है। इसके प्रमाण में उनके बहुत से प्रचलित रीति-रिवाजों का, जो शक जाति के रिवाजों से समानता रखते थे, उल्लेख किया है। ऐसे रिवाजों में सूर्य पूजा, सती प्रथा प्रचलन, अश्वमेध यज्ञ, मद्यपान, शस्त्रों और घोड़ों की पूजा इत्यादि हैं।

 टॉड की पुस्तक के सम्पादक विलियम क्रुक ने भी इसी मत का समर्थन किया है

परन्तु इस विदेशी वंशीय मत का गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने खण्डन किया है। ओझा का कहना है कि राजपूतों तथा विदेशियों के रस्मों-रिवाजों में जो समानता कनर्ल टॉड ने बताई है, वह समानता विदेशियों से राजपूतों ने प्राप्त नहीं की है, वरन् उनकी सत्यता वैदिक तथा पौराणिक समाज और संस्कृति से की जा सकती है। अतः उनका कहना है कि शक, कुषाण या हूणों के जिन-जिन रस्मो-रिवाजों व परम्पराओं का उल्लेख समानता बताने के लिए जेम्स टॉड ने किया है, वे भारतवर्ष में अतीत काल से ही प्रचलित थीं। उनका सम्बन्ध इन विदेशी जातियों से जोड़ना निराधार है।

 डॉ. डी. आर. भण्डारकर राजपूतों को गुर्जर मानकर उनका संबंध श्वेत-हूणों के स्थापित करके विदेशी वंशीय उत्पत्ति को और बल देते हैं। इसकी पुष्टि में वे बताते हैं कि पुराणों में गुर्जर और हूणों का वर्णन विदेशियों के सन्दर्भ में मिलता है। इसी प्रकार उनका कहना है कि अग्निवंशीय प्रतिहार, परमार, चालुक्य और चौहान भी गुर्जर थे, क्योंकि राजोर अभिलेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।

 इनके अतिरिक्त भण्डारकर ने बिजौलिया शिलालेख के आधार पर कुछ राजपूत वंशों को ब्राह्मणों से उत्पन्न माना है। वे चौहानों को वत्स गोत्रीय ब्राह्मण बताते हैं और गुहिल राजपूतों की उत्पत्ति नागर ब्राह्मणों से मानते हैं।

डॉ. ओझा एवं वैद्य ने भण्डराकर की मान्यता को अस्वीकृत करते हुए लिखा है कि प्रतिहारों को गुर्जर कहा जाना जाति विशेष की संज्ञा नहीं है वरन् उनका प्रदेश विशेष गुजरात पर अधिकार होने के कारण है।

जहाँ तक राजपूतों की ब्राह्मणों से उत्पत्ति का प्रश्न है, वह भी निराधार है क्योंकि इस मत के समर्थन में उनके साक्ष्य कतिपय शब्दों का प्रयोग राजपूतों के साथ होने मात्र से है।

इस प्रकार राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में उपर्युक्त मतों में मतैक्य नहीं है। फिर भी डॉ. ओझा के मत को सामान्यतः मान्यता मिली हुई है।

निःसन्देह राजपूतों को भारतीय मानना उचित है।

राजपूतों की शाखाएं ( Rajput caste history )

सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, अग्निवंशीय

सूर्य वंश की शाखायें ( Suryavansh )

1.कछवाह

2.राठौड

3.बडगूजर

4.सिकरवार

5.सिसोदिया

6.गहलोत

7.गौर

8.गहलबार

9.रेकबार

10 .जुनने

11. बैस

12. रघुवशी

चन्द्र वंश की शाखायें ( Chandravansh )

1.जादौन

2.भाटी

3.तोमर

4.चन्देल

5.छोंकर

6.होंड

7.पुण्डीर

8.कटैरिया

9 .दहिया

अग्निवंश की चार शाखायें ( Agnivansh )

1.चौहान

2.सोलंकी

3.परिहार

4.परमार

कर्नल जेम्स टॉड ( James Tod )

राजस्थान में रेजीडेंट 1817 से 1822 तक।  नियुक्ति- पश्चिमी राजपूताना क्षेत्र में। 28 तारीख को सामंतवादी की स्थापना करने का श्रेय कर्नल जेम्स टॉड को जाता है।

संज्ञा- घोड़े वाले बाबा राजस्थानी इतिहास के पितामह

पुस्तकों का संपादन विलियम क्रुक ने करवाया, पुस्तकों का हिंदी अनुवाद गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने किया

कर्नल जेम्स टॉड की पुस्तक ( James Tod’s book )

Vol.1:- एनाल्स एण्ड एण्टीक्वीटीज आॅफ राजस्थान 1829

Vol.2:- the central and western Rajputana states of India 1832

travels in western India (1839)

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